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तपती धूप से ज्यादा वेट बल्ब टेम्परेचर लोगों के लिए घातक, 35 डिग्री सेल्सियस पर भी हो सकता है मौत

तहलका न्यूज रायपुर// जब भी हम गर्मी की बात करते हैं, हम आमतौर पर उस दिन के तापमान को देखते हैं। इसमें हवा में मौजूद नमी या ह्यूमिडिटी को नहीं मापा जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के साथ हम सब ये बात तो जानते हैं कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है, लेकिन गर्मी के साथ ह्यूमिडिटी भी बढ़ रही है। वेट बल्ब टेम्परेचर में गर्मी के साथ ह्यूमिडिटी भी शामिल है, यानी यह तापमान तथा नमी का कॉन्बिनेशन है, हवा में ह्यूमिडिटी या नमी होने से शरीर से निकलने वाला पसीना आसानी से नहीं सूखता और शरीर को खुद को ठंडा करने में समस्या हो सकती है। हमारे शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री सेल्सियस होता है और हवा का तापमान भी इसके बराबर होने पर शरीर का पसीना वाष्पित नहीं हो पाता। ऐसे मामले में 31 डिग्री तक वेट बल्ब तापमान हमारे शरीर के लिए खतरनाक हो सकता है, लेकिन 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान में ज्यादातर इंसान 6 घंटे से ज्यादा जिंदा नहीं रह सकते।

वेट बल्ब टेम्परेचर से क्या पता चलता है?

सबसे पहले इंसानों का कूलिंग सिस्टम समझिए एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस या 98.6 डिग्री फारेनहाइट होता है। हमारा शरीर प्राकृतिक रूप से इस तरह से डिजाइन किया हुआ है कि हम इस तापमान को मेंटेन करके रखते हैं। वातावरण में तापमान के बढ़ने या घटने से शरीर के तापमान पर भी कुछ असर पड़ता है। शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस से नीचे जाने पर हमें ठंड महसूस होती है और इस तापमान के बढ़ने पर गर्मी महसूस होती है। हमारा शरीर अपने तापमान को मेंटेन करने के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार होता है। गर्मी में शरीर से पसीना निकलना भी तापमान को मेंटेन करने का एक कुदरती तरीका है। हमारा शरीर लगभग 60% से 70% पानी से बना है। गर्मी में जब हमारे शरीर का तापमान बढ़ने लगता है तब शरीर की पसीने की ग्रंथियां एक्टिव हो जाती हैं। इससे हमें ज्यादा पसीना आता है और पसीने के सूखने पर शरीर ठंडा रहता है। इस तरह से पसीना आना अपने आप में शरीर का कूलिंग सिस्टम है।

हमारी बॉडी का कूलिंग प्रोसेस
शरीर का तापमान सामान्य से ज्यादा होने लगता है तो ब्रेन में मौजूद हाइपोथैलमस को टेम्परेचर बैलेंस करने का सिग्नल मिलता है। सिग्नल मिलते ही हाइपोथैलमस बॉडी के दो कूलिंग प्रोसेस को एक्टिवेट करता है…

पहला:– हमारी बॉडी कैपिलरी (ब्लड वेसल) के माध्यम से शरीर के अंदर के गर्म खून को स्किन की ओर भेजती है और ठंडे ब्लड को बॉडी के अंदरूनी भाग में।

दूसरा:– बॉडी कूल करने के लिए हमारी स्वेट ग्लैन्ड पसीना छोड़ना शुरू कर देती है। इससे बॉडी की ऊपरी सतह हवा के कॉन्टैक्ट में आकार ठंडी होने लगती है। स्किन ठंडी होने से कैपिलरी का गर्म खून भी ठंडा होकर शरीर के अंदरूनी हिस्से में पहुंचता है। ये प्रोसेस लगातार हमारी बॉडी में चलती रहती है जिससे बॉडी खुद का तापमान बैलेंस करती है।

ह्यूमिड हीट में कमजोर पड़ जाता है कूलिंग प्रोसेस

ड्राई हीट सिचुएशन में हमारी बॉडी से निकलने वाला पसीना आसानी से सूख जाता है। ह्यूमिड हीट सिचुएशन के दौरान हमारी स्किन पर मौजूद पसीना नहीं सूख पाता, जिस कारण हमारी बॉडी स्किन को ठंडा रखने के लिए ज्यादा पसीना बाहर निकालती है। इस तरह के वातावरण में लंबे समय तक रहने पर बॉडी से पसीने के रूप में सोडियम और जरूरी मिनरल्स शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इसका सीधा असर किडनी और हार्ट पर होता है। यह स्थिति सामान्य गर्मी से ज्यादा खतरनाक और जानलेवा हो सकती है। यहीं वेट बल्ब टेम्परेचर की एंट्री होती है।



Dhanendra Namdev

Editor, IND24tv.com

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